उसने फिर से याद किया न जाने क्यों
कई यादें कई किस्से ओठों पर आकर रुक गई थी
जब उसने आवाज दिया फिर लौट आई में न जाने क्यों
ना रास्ते कि पता न मंजिल कि ठिकाना
फिर भी चली जा रही थी न जाने क्यों
जानती थी अंजाम इस रास्ते की
कभी सहम सी जाती, कभी ठहर सी जाति,
एक पल के लिए फिर बिना सोचे चली जा रही थी न जाने क्यों
उस रास्ते पर बैठकर आंखें बिछाई रहती
कभी इस आश में आह भर्ती कभी खुद को समझाती न जाने क्यों
हर रोज एक खत लिखा करती
यह जानते हुए कि कोई पैगाम नहीं आएगी
फिर भी इसी आश में रहा करती न जाने क्यों
यह रास्ते कट चुकी थी मेरे रास्ते से
फिर भी कभी रास्ते को जोड़ा करती ना जाने क्यों
उसने फिर से याद किया न जाने क्यों
कई यादें कई किस्से ओठों पर आकर रुक गई थी
जब उसने आवाज दिया फिर लौट आई में न जाने क्यों
ना रास्ते कि पता न मंजिल कि ठिकाना
फिर भी चली जा रही थी न जाने क्यों
जानती थी अंजाम इस रास्ते की
कभी सहम सी जाती, कभी ठहर सी जाति,
एक पल के लिए फिर बिना सोचे चली जा रही थी न जाने क्यों
उस रास्ते पर बैठकर आंखें बिछाई रहती
कभी इस आश में आह भर्ती कभी खुद को समझाती न जाने क्यों
हर रोज एक खत लिखा करती
यह जानते हुए कि कोई पैगाम नहीं आएगी
फिर भी इसी आश में रहा करती न जाने क्यों
यह रास्ते कट चुकी थी मेरे रास्ते से
फिर भी कभी रास्ते को जोड़ा करती ना जाने क्यों
उसने फिर से याद किया न जाने क्यों
कई बातें इंसान करता है न जाने क्यों ... इसका जवाब होना जरूरी नहीं ...
जवाब देंहटाएंकरते जाना जरूरी है ...
कई प्रश्न खुद से खुद के ... पर जवाब क्यों ... अच्छी रचना ...
बिल्कुल सर मैं आपकी तर्क से सहमत हूं धन्यवाद
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