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गुरुवार, 11 जून 2020

वेनाम हैं!

कहने को , मैं शहर में रहती हूं!
लेकिन मेरी दशा ,
गांव से भी बदतर है!!

लोगों को बाहरी चमक-दमक दिखती है!
मेरे अंदर तो आज भी अंधेरो की बस्ती है!!

चाहत तो आज भी कई है!
सहज कार्य करने की!
लेकिन न जाने ऐ मन  कुछ करने से डरती है!!

दुर चमकती रोशनी को देखकर!
मन में फिर एक आशा जगती है!!


कभी दिन में उजाला होती हैं!
कभी  घनघोर अंधेरा छा जाती हैं!!


आखिर  हैं क्या ऐ?
उलझे प्रश्न की उथली सी पहचान है!!

मेरे एक वैचारिक बातों से!
सब अनजान है!!

मानो की अतिशय चिंता के कारण!
सब परेशान हैं!!










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