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शनिवार, 13 जून 2020

बदलाव!


आज मैंने एक लड़की को सिसकते हुए देखा!
अपने आंसुओं को उसे छुपाते हुए देखा!!

जो कल थी आसमान की पंछी
उसे आज पिंजरे में  कैद होते हुए देखा!!

जिन कंधों पे स्कूल का कभी थैला था!
आज उसे , उन्ही  कंधों पर  जिम्मेदारियों का बोझ उठाते देखा!!

बचपन में खेला करती थी जो कभी गुड़ियों सें..!
उसे आज खिलौना बनते हुए देखा!


कच्ची उम्र में रिश्तो को बोझ उठाते हुऐ देखा!
जो कभी घर की  राजकुमारी थी!
उसे रिश्तो में  बंधते हुए देखा!!

कभी खुद में मस्त रहा करने वाली को,
आज उसे दूसरों की खुशियां ढूंढते देखा !!

अपनों के लिए खुद उसे मरते हुए देखा !
आज मैंने एक लड़की को औरत बनते देखा!!

कभी खुद मां की ममता में रहने वाली ,
आज  उसे अपनो के लिए ममता लुटाते हुए  देखा!!

कभी अपने कभी अपनो के लिए,
नदियों की जलधारा में बहते हुऐ देखा!!

हां , आज मैंने एक लड़की को औरत बनते  देखा

गुरुवार, 11 जून 2020

वेनाम हैं!

कहने को , मैं शहर में रहती हूं!
लेकिन मेरी दशा ,
गांव से भी बदतर है!!

लोगों को बाहरी चमक-दमक दिखती है!
मेरे अंदर तो आज भी अंधेरो की बस्ती है!!

चाहत तो आज भी कई है!
सहज कार्य करने की!
लेकिन न जाने ऐ मन  कुछ करने से डरती है!!

दुर चमकती रोशनी को देखकर!
मन में फिर एक आशा जगती है!!


कभी दिन में उजाला होती हैं!
कभी  घनघोर अंधेरा छा जाती हैं!!


आखिर  हैं क्या ऐ?
उलझे प्रश्न की उथली सी पहचान है!!

मेरे एक वैचारिक बातों से!
सब अनजान है!!

मानो की अतिशय चिंता के कारण!
सब परेशान हैं!!










मंगलवार, 2 जून 2020

छाया हैं

जहां देखो हर तरफ सबकी अपनी छाया है,
खुद में लिपटे प्रतिशोध कदमों से डगमगाया है',

फिर भी तुझसे दूर जा न पाया है,
तेरे हर एक कदम को अपने कदम में पाया है

छाया तुझसे कुछ नहीं पाया है
जिंदगी में बस खुद को बेघर पाया है',

जहा जाऊ वहा साथ तुझको पाया हैं,


     

Lakir

  क्या लिखा है? हाथों के लकीरों में। कभी गहरा तो कभी फिका उकेरी है इन हथेलियों में में! कुछ किस्से कुछ सबूत छुपी है लकीरों में। रंग उत...