जहां देखो हर तरफ सबकी अपनी छाया है,
खुद में लिपटे प्रतिशोध कदमों से डगमगाया है',
फिर भी तुझसे दूर जा न पाया है,
तेरे हर एक कदम को अपने कदम में पाया है
छाया तुझसे कुछ नहीं पाया है
जिंदगी में बस खुद को बेघर पाया है',
जहा जाऊ वहा साथ तुझको पाया हैं,
खुद में लिपटे प्रतिशोध कदमों से डगमगाया है',
फिर भी तुझसे दूर जा न पाया है,
तेरे हर एक कदम को अपने कदम में पाया है
छाया तुझसे कुछ नहीं पाया है
जिंदगी में बस खुद को बेघर पाया है',
जहा जाऊ वहा साथ तुझको पाया हैं,
अच्छी रचना है ... खुद को सचेत करती हुई ...
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