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शनिवार, 12 सितंबर 2020

एक ख्वाब



एक ख्वाब थी जीवन का
जिसमें साथ हो सब का

सब
हंसे ,
जग रोए ना!
कोई गम ना  हो अपनों का।

यूं तो हमने कभी सोचा नहीं
कि इस कदर बिखर जाएंगे
और उम्मीद ही
ना रह पाएगी अपनों से अपनों का।

मौसम के इस अदला-बदली में
कई रंग
बेरंग लाएगी और अश्क बन कर बहेगी।
कुछ पुराने पत्तों सी
पलको सा!

देखें अब क्या है ?
इस किस्मत में कुछ अपनो सा!

मुस्कुराहट या फिर कोई नई नुमाइश
जिंदगी के तउल में
उलझ कर रह गई
खुद से खुद के सपनों सा!!

माया

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