अंदर से टूटी नहीं हूं ,फिर भी लोग तोड़ रहे हैं!
न जाने क्यों?
आजकल लोग,रिश्तो से मुंह मोड़ रहे हैं!!
आज भी सब के बिचो निस्सहाय व असुरक्षित
हु मैं,
शायद समझ नहीं पा रही हूं
कौन हूं मैं?
आज
भी
मौन
हूं
मैं,
मन में दबी वेदना ना जाने कितनी भरी है
कभी रिश्तो की मजबूरी
कभी उम्र के बीच दूरी
इन सबके बीच में,
पड़ी हूं मैं!
मेरी खामोशी मुझे बुलाती है
अंदर ही अंदर चिल्लाती है
जब गुजरती हूं
मैं अपने अंदर से
खुद को बेघर पाती हूं मैं!!
हर पल,
किसी न किसी कारण
खुद को रुलाती हूं मैं
लोगों के ताने व सोच
मेरे प्रति,
उनकी कही हुई बातें,
मुझ से ही कई प्रश्न,
आंसू के द्वारा कह जाती है,
मै हर ऐसे बातों पर
खुद को झूझलाती क्यु हुं मैं,
मैं आज भी मौन क्यु हूं मैं!!
न जाने क्यों?
आजकल लोग,रिश्तो से मुंह मोड़ रहे हैं!!
आज भी सब के बिचो निस्सहाय व असुरक्षित
हु मैं,
शायद समझ नहीं पा रही हूं
कौन हूं मैं?
आज
भी
मौन
हूं
मैं,
मन में दबी वेदना ना जाने कितनी भरी है
कभी रिश्तो की मजबूरी
कभी उम्र के बीच दूरी
इन सबके बीच में,
पड़ी हूं मैं!
मेरी खामोशी मुझे बुलाती है
अंदर ही अंदर चिल्लाती है
जब गुजरती हूं
मैं अपने अंदर से
खुद को बेघर पाती हूं मैं!!
हर पल,
किसी न किसी कारण
खुद को रुलाती हूं मैं
लोगों के ताने व सोच
मेरे प्रति,
उनकी कही हुई बातें,
मुझ से ही कई प्रश्न,
आंसू के द्वारा कह जाती है,
मै हर ऐसे बातों पर
खुद को झूझलाती क्यु हुं मैं,
मैं आज भी मौन क्यु हूं मैं!!