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शनिवार, 30 नवंबर 2019

अपनी स्वतंत्रता की चाह

छोड़   क्यों नहीं देते इस दुनिया में मुझे अकेला।                 
   मैं भी तो देखूं  दुनिया ऐ की मेला ।।



                मैं भी उड़ना चाहूं चलना चाहु जब मन हो अकेला।
          क्यों बंद कर रखे हो मुझे इस दुनिया में यूं ही अकेला।।


रात हुई तो सुबह भी हुई दोपहर से शाम हुई।
मैं भी जीना चाहूं औरों की तरह अकेला।।


      राहों में मुझको कोई ना रोके चलने दे मुझे अकेला।
    क्यों मैं तुम का भेद बना छोड़ दे मुझे अकेला।।
     


   
       

                                   

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब ... मन तो कई बार चाहता है ऐसी बातें ... कई बार भीड़ में भी अकेला ही होता है इंसान ...
    लजवाब भाव पूर्ण रचना है ...

    जवाब देंहटाएं
  2. 😊 धन्यवाद सर जो आपने मुझे सराहा मेरी तो शुरुआती दौर है इस राह में पता नहीं इस राह में कब तक चलूंगी?

    जवाब देंहटाएं

Lakir

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