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गुरुवार, 16 जुलाई 2020

जात पंडित की

कई वर्षों से न जाने कितना कुछ पढ़ी थी!
लेकिन उसमें ज्यादातर राजा रानी के किस्से थे,पढ़ने में वह बहुत अच्छे लगते थे,मगर लिखना मैं कुछ और चाहती थी!
उस तरह के किस्से फिर से लिखकर क्या होगा ठीक है उनसे दिल बहला होता है! मगर हम आखिर कब तक इसी तरह के दिल बहलाव कहानियां पढेंगे और लिखेंगे!इस तरह तो इतिहास के पन्नों से नाम ही मिट जाएंगे!
जरा अपने समाज के हालत भी तो देखो कैसे मुर्दों की नींद सो रहा है!
ऐसे सामाजिक को दिल बहलाने की जरूरत है या झकझोर कर उन्हें जगाने की?
न जाने कब से सो  रहे हैं इसी तरह!
हमारे हिंदू समाज में आदमी को आदमी नही समझा जाता !एक आदमी के छु जाने से दूसरे आदमी की जात चली जाती है,,
कहने को तो हम 21वीं सदी में जी रहे हैं,लेकिन सोच वही ,कहने और देखने को तो बहुत कुछ परिवर्तन हुआ यहां पर औरतों को घर से बाहर निकलने पर काम करना, ,
पुरुष और महिलाओं में कोई भेदभाव नहीं!

जातपात के प्रति भेदभाव करना बिलकुल भी सही नहीं है .पर आप सोचिये जो लोग जातपात का फायदा उठा रहे है क्या वो चाहते है की जातपात ख़त्म हो जाए ? जातपात के प्रति भेदभाव अब सरकार बड़ा रही है और जो इसका फायदा उठा रहे है बो इसको ख़त्म नहीं करना चाहते है .जातपात ख़त्म यानी आरक्षण ख़त्म . कौन सी आरक्षित वर्ग की जाती चाहती है आप सोचिये और जबाब दीजिये .जातपात के प्रति भेदभाव -आप ट्रेन बस में सफ़र करते है तो आप सहयात्री से जाती पूछकर उसके बगल में बैठते है ? आप ड्रायवर और अन्य स्टाफ से जाती पूछते है ? आप सब्जी खरीदते समय ,किरण खरीदते समय , बफे में भोजन करते समय बेटर की जाती का ध्यान रखते है ?जब उनके हाथ का खा रहे है .उनके बरावरी में बैठ रहे है उन्हे सम्मानजनक तरीके से बात कर रहे है तो भेदभाव कैसा है?



मेरा मानना हे की यह जातीपहले कर्मो के आधार पर बाटी गयी थी जो जैसा कर्म करता हे उसकीजातीवही होतीथी . तो उस समय जो छुआछूत थी वह कर्म पर आधारित थी क्षुद्रों का काम था गंदगी का सफाई करना तो लोग उनसे दूर रहते थे पर अभी सब बदल चूका हे . एक क्षुद्र जाती का व्यक्ति गायत्री समाज या आर्य समाज के अनुसार अपने आपको परिवर्तित कर लेता हे और एक ब्राम्हिन शराबऔर मांस का सेवन करता हे भगवन से दूर हे तो उस क्षुद्र के साथ रहना बेहतर होगा न की ब्राहण के . ऐसा मेरामानना हे ,हो सकता हे आपअसहमत हो .!
यह सब इन्हीं बड़े-बड़े तिलकधारी और ब्राह्मणों की, पुजारियों महंत मठाधीशो की कारस्तानी है!
कहने को चतुर्वेदी है त्रिवेदी है,यह है वह है लेकिन है निरे लिख लोड़ा पढ़ पत्थर, एक वेद की भी शक्ल देखी हो या याद हो,

इनका काम ही है फ्री का हलवा पूरी उड़ाऐ जाओ और चैन की बंसी बजाए जाओ!
बहुत समय पहले की बात है।जब मैं  9 साल की थी, गर्मियों की छुट्टी में मैं अपनी नानी की घर गई थी,
उसी गांव में
सोहन चाचा रहते थे,पूरे गांव में पंडित के नाम से विख्यात थे!

एक डोम रहता था। गांव के बाकी सभी किसान और पंडित थे। डोम बटबा बना करके अपने परिवार का पालन पोषण करता था।
माग़र गांव वाले उसके साथ बड़ा ही बुरा व्यहवार करते थे।
कोई भी उस के घर नही जाता। ना ही कोई उसे शादी याँ कोई तुहार में शामिल भी नही करता। सभी उसे छोटी जाती का मानते थे।
सभी उस से दूर दूर रहते थे।
उसका घर गांव के बीच मे था।
उस व्यक्ति का नाम बांस वली था!
 देखने में बहुत ही सुंदर उच्चा कर दे गोरा रंग, न जाने क्यों लोग उसे देखकर दूर भाग देते थे  उसे दुत्कारते थे!
कहने को मैं भी पंडित हूं लेकिन मैं जात पात में विश्वास नहीं रखती!
मेरे देश में लोग नाम से पहले जात पूछते है। 💔
एक दिन सोहन चाचा के घर पर बासबली आया कुछ मांगने को,अरे मालीक कहां हो पैसा दीजिएगा!
बहुत भूख लगी है अगर पैसा नहीं तो कुछ खाना ही दे दीजिए!
उस समय सोहन चाचा घर पर नहीं थी उनकी छोटी बहू कुछ काम कर रही थी,
तभी सोहन चाचा की पत्नी,
चिलाते हुऐ बोली !घर मे मत घुसना
तभी चाची की नजर मुझ पर पड़ती है और कहती अच्छा बिटिया जरा बांस वाली को खाना देते आना  मैं जाती हूं बास बलि के हाथों में चुपचाप
खाना की थाली  रख देती हूं!
 बाहसबली को देखकर ऐसा लगता है कि बेचारा भूख के मारे तड़प रहा है कब से आंखें लगाए इंतजार में राह जोह रहा था !
कुछ झण के बाद चाची आती है  मैं समझ पाती कि उसे पहले वह चिलाउट अरे बिटिया तूने क्या कर दिया ,उसको खाना इसके बरतन में देनी थी ना कि अपने बर्तन में तूने बर्तन खराब करती हाय मेरी मेरे धर्म भ्रष्ट हो गए!
मैं कुछ बोल हीं पाते कि उससे पहले उन्होंने मेरे हाथ की खींचते हुए नानी के पास लेकर आ गई, क्या बताएं छाया की नानी  नहलाओ पहले इनको
पहले तो नानी समझ नहीं पाए लेकिन जो पूरी वाक्य  पता चला नानी मुझ पर ही बिगड़ पड़ी! 
चिल्लाते हुए बोली जाकर पहले नहा नहीं तो घर में घुसने नहीं दूंगी !
मजबूर नहीं चाहते हुए भी मुझे नहाना पड़ा !  




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